Our Plans

Action Plasn 2016-17


प्रस्तावना:
आपदा प्रबंधन एवं सहायता विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा जिला कलक्टरों से प्राप्त सन् - 2015 की गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर क्रमांक - एफ 1(1)(4) आप्रसआ/सामान्य/2015/14226-66 जयपुर, दिनांक 19.12.2015 को जारी अधिसूचना अन्तर्गत 14,487 गांवों को अभावग्रस्त घोषित कर दिया, जो कि 15 जुलाई 2016 तक प्रभावी रहेगी। इसमें बारां जिले के 1070 गांवों को अभावग्रस्त घोषित किया गया है।
बारां जिले में प्रकृतिजन्य विपरित परिस्थितियां विगत 04 साल से बनी हुई है, जिसके चलते यहां का आम आदमी काफी ज्यादा परेशान हो गया। खासकर गौवंश / पशु तो ‘हर्रा’ गये हैं यानि कि आर्थिक संकट को देखते हुए गौवंश यानि पशुओं को कुदरत के भरोसे लावारिस छोड़ दिया गया।
यद्यपि सरकार द्वारा 124 गांवों को छोड़कर 1070 गांवों को अभावग्रस्त घोषित किया गया, लेकिन परिस्थितियों के मध्येनजर श्री महावीर गौशाला कल्याण संस्थान लगभग सभी अभावग्रस्त गांवों में अस्थाई पशु / गौवंश राहत शिविर लगाने की भावना रखता है। इसका विवरण निम्नानुसार है -


अनुत्पादक गौवंश में पशुपालकों की अरूचि एक बड़ी चुनौती:-


सेन्सस - 2012 के अनुसार कोटा संभाग अन्तर्गत बारां जिले में देशी नस्ल की करीब 1,61,828 गायंे हंै। इसके साथ ही यहां संचालित पंजीकृत एवं अपंजीकृत श्रेणी की करीब 10 गौशालाओं में अनुमानित 10 हजार से अधिक गायों का पालन-पोषण किया जा रहा है। खास बात यह कि इनमें नाॅन डिस्क्रिप्ट गायों की संख्या सर्वाधिक है। इनमें अधिकांश के लिए अब चारे-पानी की व्यवस्था नहीं रही। भैंस पालन के मुकाबले गायों की उत्पादकता / उपयोगिता पशुपालकों की नजर में काफी कम हो गयी।
इसके चलते इन्हें बेकार बिठाये रखकर चारा-पानी देने का व्यय भार पशुपालक / किसान नहीं उठा पा रहे, जिससे यह गौवंश ‘आवारा’ छोड़ दिया गया। नतीजतन गौवंश ‘लाचारगी’ की अवस्था लिये सड़कों, गलियों, मोहल्लों, बाजारों, मण्डियों एवं कूड़ाघरों में घूमते पाया जाता है, जहां इनके दुर्घटनाग्रस्त एवं संक्रमित हो जाने के आशंका ज्यादा बढ़ गयी। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर ही उक्त योजना का मसौदा तैयार किया गया है।
लक्ष्य यह है कि ग्रामीण स्तर से लेकर शहरी क्षेत्र तक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से शारीरिक चोट-दुर्घटना, संक्रमण, यातायात बाधा व पर्यटन विकास में अव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण बने रहे आवारा गौवंश का बड़े पैमाने पर संरक्षण एवं संवर्द्धन हो सके। साथ ही इन्हें कसाईयों के हाथों बेचे जाने से रोकने में काफी बड़ी मदद मिलेगी।


योजना की क्रियान्विती:-


योजनान्तर्गत सभी 1194 गांवों में कमोबेश 05 बीघा जमीन चिन्हित कर गौवंश के लिए अस्थाई राहत शिविर बनाया जायेगा। इसकी देखभाल के लिए केवल ग्राम वाइज उप समिति का गठन होगा। उप समितियों की निगरानी में ग्रामवार आवारा घूम रहे गौवंश को अस्थाई राहत शिविर में लाकर रखा जायेगा। जहां गौवंश की संख्या के अनुरूप उपकी खुराक आदि व्यवस्था संस्थान सुनिश्चित करेगा। आवासीय व्यवस्था के तहत शैड बनाये जायेंगे, जबकि पानी के लिए पर्याप्त खेलें होंगी। उप समिति एवं संस्थान की प्रबंध कार्यकारिणी के मध्य नियमित संवाद प्रक्रिया को सहज बनाने हेतु सुपरवाईजर नियुक्त किये जायेंगे, जो उप समिति की देखरेख में राहत शिविर की जरूरतों का जायजा लेकर संस्थान को रिर्पोटिंग करेंगे। राहत शिविरों में रहवासी गौवंश की देखभाल, चारा-पानी, बिजली आदि की पुख्ता व्यवस्था की जायेगी। साथ ही बीमार एवं संक्रमित गौवंश आदि के लिए पृथक से शैड बनाकर दवा-उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित होगी।


अनुमानित बजट:-


उपरोक्त तालिका अनुसार वर्णित 1194 गांवों में गौवंश / पशु राहत शिविर के लिए बड़े बजट की आवश्यकता है, जिसके लिए दानदाता, भामाशाहों एवं अनुदानित एजेन्सियों की आगे आना होगा। संस्थान यह पुनीत महायज्ञ तभी पुरा कर सकेगा, जब दानदाता, भामाशाह एवं अनुदानित एजेन्सी खुले दिल से सहायेग करेगी। यह संस्थान प्रकृतिजन्य आपदा की इस घड़ी में सरकार की भावना के अनुरूप सहयोग हेतु प्रयासरत है।

संस्थान की प्रबंधकीय क्षमता:-
योजना की क्रियान्विती का सबसे मजबूत पक्ष यह है, कि संस्थान के पास स्थायी संसाधन के लिहाज से कोई कमी दिखायी नहीं देती। यद्यपि आर्थिक पक्ष एक दूसरा पहलू है, जिसके लिए यह संस्थान दानदाताओं एवं अनुदान देने वाली एजेन्सियों के सम्पर्क में है। अभी संस्थान के पास जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर ग्राम जालेड़ा में करीब 52.37 हैक्टयर भूमि, करीब 65 किलोमीटर दूर ग्राम मामोनी में लगभग 2.87 हैक्टयर भूमि तथा करीब 10 किमी दूर ग्राम बड़ां में श्री बड़ां बालाजी धाम के सम्मुख 2.73 हैक्टयर भूमि है। इन तीनों स्थानों पर वर्तमान में कुल मिलाकर संस्थान का 1200 से अधिक गौवंश रखा हुआ है। अतः यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि योजनान्तर्गत नाॅन डिस्क्रिप्ट गायों के लिए इन तीनों गौशालाओं का भी उपयोग किया जा सकेगा।
सादर।